अहसास नहीं अभी तुमको
अहसास नहीं अभी तुमको
अहसास नहीं अभी तुमको, उनके अफसानों का,
अंदाजा नहीं अभी तुमको, उनके अरमानों का...
जब तक चुप हैं तो आंकों न तुम उनके आलम को..
उठी गर खौफ़ में औरत, हुजूम छा जायेगा तूफानों का..
अदा पे जो तुम उनके यूं हर पल मरते हो!
तनिक भी खौफ़ ख़ुदा का नहीं करते हो!
है घर पर माँ बहन बेटियाँ तुम्हारे भी तो !
फिर उनके एहसान को क्यूँ अदा नहीं करते हो!
लुफ़्त के लीनता से निकलकर हकीक़त कब देखोगे!
जश्न के जहन्नुम से निकलकर मुसीबत कब देखोगे!
जुम्बिश जफ़ा मिलकर जश्न मना रहे है इस जहान में !
हैवानियत की नशे से निकल कर इंसानियत कब देखोगे!
ये जो शिद्दत से निकलते हैं जिस्म के सफर की चाह में!
ढूंढते फिरते है जो हर तलब किसी को अपनी राह में!
अनजान है शायद अभी वो इनके अंजाम-ए-इन्तिकाम से!
पता नही उन्हें जला के राख कर देंगी ये अपनी एक आह में!
इल्लत,आवारापन छोड़ो खुद को आदमियत से बनाओ!
अव्वल,अमानत हो तुम खुद को इंसानियत से सजाओ!
बिखेर दो महक अपनी आलीमता का इस पूरे जहान में !
इत्तिका इक़तिजा हो तुम खुद को एहमियत से दिखाओ!
अदा .....ऋण
अदा.....सुंदरता
जुम्बिश....... हरकत
जफ़ा ........अन्याय
इल्लत...........बुरी आदत
अव्वल...........सर्वश्रेष्ठ
आलीमता ...... बुद्धिमान
इत्तिका............सहारा
इक़तिजा ........आवश