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✍ कुलदीप पटेल के•डी

Romance

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✍ कुलदीप पटेल के•डी

Romance

याद है

याद है

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उस घनी छाँव वाले पेड़ के नीचे,

दोपहर की तेज़ तपती धूप में,

बहती मंद गति हवाओं संग,

हिम्मत को लिए हिरासत में!


बेखौफ बेझिझक चाल में,

पगडंडी रास्ते से होकर,

अकेले बड़ी शराफत के साथ,

खबर किये बिना...


किसी काम का करके बहाना,

याद है मुझे,

रोज़ तेरा मिलने आना,

वो खण्डहर दरारों बाली दीवारों की घर में,


किसी झरोखे से झांकते धूप के कहर में,

मकड़ी के बने जाले के नीचे पड़ी टूटी चेयर में,

बालो में हाथ फेर गुफ़्तगू करना किसी के डर में,

कंधो पर रख सर बिना कहे सबकुछ समझना!


बिछड़ने के डर से तेरा घबरा जाना,

वो तेरा जमाने की निगाहों से देखना,

लाख सोचकर भी खुद को न रोकना,

अगर हो आहट कोई तो यूँ ही घबरा जाना,


खामोश चेहरा, झुकी पलकें, नम आँखे,

बयां करती मोहब्बत के एहसासों को,

दिल को धड़कने का रास्ता बताकर,

जैसे कर दिया हो आज़ाद साँसों को!


मोहब्बत के आईने में देख,

फिर लंबी-लंबी राहत भरी साँसे लेना,

याद है मुझे,

जाते-जाते मुड़-मुड़कर तेरा देखना...!


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