मेरा वह स्वप्न
मेरा वह स्वप्न
रात को जब मैंने नींद को गले लगाया
खुद को एक बादल पर बैठा पाया।
देखा जब मैंने धरती को वहाँ से ,
आँसू निकल पड़ा मेरी आँखों से।
सूखी थी धरती, झुलस रहे थे जंगल
चल रहा था पानी के लिए हर जगह
दंगल।
भयावह था वह मेरी सुंदर धरती का
दृश्य
अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा था
मनुष्य।
घबरा कर मैंने अपनी आँखें ली खोल
समझ आया मुझे तब पानी का असली
मोल।
धरती का भविष्य ही है पानी पर टिका
हुआ,
इस स्वप्न से मुझे यह एहसास हुआ।
