मेरा मोहल्ला
मेरा मोहल्ला
बरसों बाद अपने पुराने मोहल्ले की संकरी गली से गुज़रा
एक बिजली के खब्बे से लिपटी कटी पतंग ने मेरे भागते क़दमों को कुछ देर रोका
याद आए बचपन के वो यार दोस्त, वो बल्ला और बॉल
कटी पतंगों के मांझे को पकड़ने की एक मैराथन दौड़
इन संकरी गलियों में खेलना वो पकड़म पकड़ाई
और छुप्पे दोस्तों को कहना आइस पाइस
वो गुल्ली डंडा, पौषम पा जैसे कितने ही मनोरंजक खेल
आज मैदान से सिमट के चढ़ गए है टच स्क्रीन की भेंट
लोगों में और घरों में लगातार दूरियाँ बढ़ती जा रही हैं
क्यूँकि शायद संकरी गलियाँ अब बड़ी और चौड़ी होती जा रही हैं
शायद ये संकरी गलियाँ ही थी जो घरों को, लोगों को एक दूसरों के पास रखती थी
ये बँगले, ये चौड़ी सड़के घरों को लोगों से दूर कर देती हैं
काश ये दुनिया सिमट के फिर संकरी हो जाये
और मेरा मौहल्ला फिर एक बार जीवंत हो जाये!