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Manoj Kharayat

Abstract

4.0  

Manoj Kharayat

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मेरे अनदेखे सपने

मेरे अनदेखे सपने

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आज किसी ने मुझसे ठहर कर पूछा, आप क्या यही बनना चाहते थे?

यही आपके सपने थे, यही आपकी ख्वाईश थी?

उस एक सवाल ने मुझे ठहरने पर मजबूर कर दिया 

मेरे शहर मेरे स्कूल के भंवर में धकेल दिया

जहाँ बचपन में टीचर ने पूछा तुम बड़े होकर क्या बनना चाहते हो

किसी ने बिना एक पल सोचे कहा डॉक्टर, तो किसी ने इंजीनियर, तो मैंने साइंटिस्ट

कक्षाएँ साल दर साल बदलते रहे और सपने भी

और इस भीड़ में, मैं भी आईटी के महासागर में कूद गया

आज मैं अपने देश से दूर, काफी कुछ कमा रहा हूँ

पर ऐसा लगता है मेरे सपने नहीं है मेरे साथ

बहुत सोचा वो सपना क्या है मेरा, जो नहीं है मेरे पास

और जब खुद से पुछा तेरा सपना क्या है 

तो बिलकुल बचपन के उसी दिन की तरह बिना एक पल सोचे वो ड्राइंग कम्पटीशन

का वो पन्ना सामने आ गया जिसमे कुछ बर्फ से ढके पर्वत, उगता सूरज, एक झरझर बहती नीली नदी 

दो नारियल के लहराते पेड़, एक हरा-भरा खेत, एक कच्चा घर, 

एक छोटी सी नाँव, बहुत सारे उड़ते पँछी और मैं

यही तो मेरा सपना था जो बचपन से ही मेरे सामने था जो आजतक अनदेखा रहा

आज उस ठहरे सवाल ने मुझे भी ठहरने पर मज़बूर कर दिया

और मैं अपने अनदेखे सपने की ओर उड़ चला!!

  


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