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Manoj Kharayat

Abstract

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Manoj Kharayat

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वो साइकिल

वो साइकिल

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आज खड़ी मेरी पुरानी साइकिल

को देख कर कुछ यूँ लगा

वक़्त जैसे मुझे पुराने यादों

के भँवर में ले उड़ा


स्कूल, कॉलेज और पुराने दोस्तों की यादें

जो दिल में कहीं दफ़न हो चली थी

आज उसी कब्र की धूल हटाने को

एक यादों की हवा चल चुकी थी


कई मीठी कड़वी यादों का ये हिस्सा रही

और परिवार का एक जरूरी हिस्सा रही

हज़ार बार गिरे इससे हम

पर कभी शिकवा नहीं की 


बचपन की मोहब्बत थी इससे

इसलिए कभी बेवफाई नहीं की 

ये एक सच्चे हमसफ़र की तरह

मेरे कई सफ़र में मेरी साथी रही


ज़िन्दगी कभी रूकती

नहीं ये सिखलाती रही 

याद आ गया वो पल जब पहली

बार ये घर पर अवतरित हुई थी


और आज इसकी कीमत कुछ

कौड़ियों के भाव ही रह गई थी

इससे पहले ये मेरा साथ

छोड़ कर चले जाये


क्यों न एक और सफ़र का

मज़ा इसके साथ लिया जाये।


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