एक और नया साल
एक और नया साल
फिर एक नया साल चौखट पर दस्तक देने को है तैयार
अपने सपने यादों को समेट एक नए सफ़र को आ जाओ यार
एक साल से दूसरे साल पर जाना शायद उतना ही जटिल होता है
जितना की एक रेलगाड़ी से दूसरी रेलगाड़ी बदलना
जैसे सफ़र में सिर्फ रेलगाड़ी बदलती है मंज़िल वही
वैसे ही साल दर साल गुजरते है पर लक्ष्य नहीं
साल बदलते-बदलते बहुत दूर निकल आये
पर ना मंज़िल नज़र आई ना रास्ता
कुछ ठहर कर सोचा की मेरी मंज़िल क्या है
सच यही है की मेरी मंज़िल क्या है मुझे नहीं पता
मैं क्या चाहता हूँ मुझे नहीं पता
इसलिए बस सालों के सफ़र में भटकता जा रहा हूँ
और साल दर साल या यूँ कहो स्टेशनों में
रेलगाड़ी बदलता जा रहा हूँ
शायद एक दिन मुझे किसी स्टेशन पर
मेरी मंज़िल की रेलगाड़ी मिल जाएगी
और ये मेरे सालों के सफ़र को उसका लक्ष्य
फिर मैं सही मायनों में कह सकूँगा नया साल मुबारक हो