ज़िंदा हूँ
ज़िंदा हूँ
जनाज़ा मेरा रुक्सत होने को तैयार है
पर सुनो मैं अब भी ज़िंदा हूँ
दोस्तों रिश्तेदारों की यादों में
८० साल बिताये इन लम्हों में
सुबह की किरण में, शाम के आसमान में
टिमटिमाते-टिमटिमाते तारों के बीच में
उन पुराने गुनगनाते-गुनगनाते नग्मों में
अपने घर की हर एक ईंट में
अपने खेतों के हर कण में, हर फ़सल में
नदी की हर धारा में, दूर नीले गगन में
अपनी आने वाली पीढ़ियों में
अपने बाग़ के हर एक फल में
अपने गावों की हर एक गली में
मेरा जनाज़ा ले जाने वालो सुनो
मैं आज भी ज़िंदा हूँ!