मेरा गाँव
मेरा गाँव
मटका भरा - भरा जो रहता,
टूटा - बिखरा पड़ा हुआ है।
घर जो मेरा शोर मचाता,
विवश आज वह खड़ा हुआ है।।
गाँव के बच्चे शोर मचाते,
हठ पर अपने अश्रु बहाते।
बूढ़ी दादी खाट पर बैठे,
हम बच्चों को गीत सुनाती।।
हरा- भरा जो गाँव था मेरा,
टूटा बिखरा आज है।
विटप - पत्र यह शुष्क पड़े,
और घर मेरा कंगाल है।।
गाँव जो मेरा शोर मचाता,
वही गाँव सुनसान है।
गाँव यह जीवित नज़र न आता;
यह कोई श्मशान है?
घर - घर में जब दीपक टिम - टिम,
तारकगण पलके झपकातें।
दीया वो टुकड़े - टुकड़े में है,
तम का साम्राज्य है।।
क्या यही,
क्या यही मेरा गाँव है?
