मेरा बचपन....
मेरा बचपन....
मशीनी बिस्तरों पर रात बिताकर
जब भी सोकर उठता हूँ
क्या ये सुबह ही है
अक्सर सोचा करता हूँ !
फिर खयाल होते हैं
और मैं होता हूँ
कई-कई सवाल होते हैं
और जवाब भी मैं होता हूँ
कि काश ये सेलिंग आज की जगह,
बस कल हो जाये
सच, बड़ा मन करता है !
फिर कहीं करीब चाय
देने वाली बीवी हो
थोड़ा सर खाने वाले बच्चे हों
डाँट भी पड़ जाये
थोड़ी जो माँ-बापू से
तो भी मैं खुश
कि दिल के भीतर तो वही,
जो दूर अपना घर होता है
सच, बड़ा मन करता है !
कि काश रंगोली वाला कोई
तो एक Sunday हो जाये
बस एक दिन भर की छुट्टी हो
और कोई मशीन न बुलाये
फिर बैठ जाऊँ टीवी के सामने
9 बजे से महाभारत
टीवी पर शंख बजाये
फिर मोगली और डक-टेल्स
वाला Sunday खूब हंसाये
सच बड़ा मन करता है !
मशीनी बिस्तरों पर रात बिताकर
जब भी सोकर उठता हूँ
सच... बड़ा मन करता है !
इच्छित !