मेरा अन्नदाता
मेरा अन्नदाता
आखिर अभी तक मौन हो
मेरा अन्नदाता पिट रहा
सरपट सड़कों पे घिस रहा
गिरकर बहुत कराह रहा
आवाज ना कोई सुन रहा !
हम आज जो बलवान है
हम आज जो भी महान हैं
आखिर भला ये क्यूँ हुआ
क्या इतने हम नादान हैं ?
जिसने दी सांसो की आस
जिसने रखा अपनो के पास
जीवन भी तो उसका ऋणी
क्या है नहीं उन्हें अहसास !
अब वक़्त है कि न्याय हो
शिक्षक किसान पर्याय हो
आखिर सब क्यूँ यूं लगे
कोई भी ना कुछ कर रहा
हम तो व्यथित हैं इस तरह
जैसे कोई जन जिस तरह
ना जी सके ना मर सके
पर बिन कहें ना रह सके !!