मेरा आसमान
मेरा आसमान
नहीं चाहिए मुझे हीरे मोती या सोने के गहने।
नहीं चाहिए मुझे तुम्हारा पूरा आसमान।
बस दे दो मेरा स्वप्नीला एक टुकड़ा बादल,
भले ही रख लो, तुम यह सारा जहान।
उस ख्वाहिशों के बादल के टुकड़े तले,
मैं अपने नन्हे नन्हे सपने सजाऊँगी ,
जहाँ सुने जाते हों मेरे भी अल्फाज़,
ऐसी बराबरी वाली नई दुनिया बसाऊँगी।
जहाँ न तौली जाती हो कोई स्त्री
उसके संग-रूप या कद काठी से,
जहाँ न लगती हो उसकी अस्मत की बोली,
समाज के कुलीन ठेकेदारों से।
जहाँ समझा जाए उसे भी
एक हाड़- माँस का जीवित इंसान।
बस दे दो एक टुकड़ा बादल का मुझे,
तुम रख लो पूरा आसमान।
मुझे चाहिए वो नगर, जहाँ स्त्री को
बात-बात पर नीचा न दिखाया जाए।
जहाँ उसे सिर्फ सेविका समझकर,
उस पर हुकुम न चलाया जाए।
जहाँ उसके सपनों को पंख मिले,
खुलकर उड़ने के लिए
और उन परों को नोचा ना जाए।
जहाँ मिल सके उसे भी पुरुष के समान मान।
बस दे दो एक टुकड़ा बादल का मुझे,
तुम रख लो पूरा आसमान।
पर मैं तुमसे एक टुकड़ा माँग क्यों रही हूँ?
तुम्हारी तरह मैं भी तो ईश्वर की बनाई कृति हूँ।
इस आधे आसमान की मैं भी तो स्वामिनी हूँ।
हाँ! अब मैं लेकर रहूँगी अपने हक के सभी बादल
और अपने हक का सुनहरा आसमान।
अपने हक का सुनहरा आसमान।।