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Anita Sharma

Abstract Others

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Anita Sharma

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मौन_सफर

मौन_सफर

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मैं मौन सफर पर हूँ

विश्राम बुन रहा कुछ भागता मन,

स्मृतियाँ शांत हैं…

ये पहाड़ झरने...चाँद तारे दरख़्त,

संग रेत सा वक़्त,

मुझमें वेग तलाश करता जाने क्यों,

मेरी इन्द्रियों ने चुन ली मन भर,

घास फुनगियों से बिखरी ओस,

प्यास बुझाने को..बाँध ली है पोटली

कि बाकी है जो मेरे हिस्से का…!

उस मौन सफर पर हूँ

एक मीठी बयार बुझते दर्द को,

रोमांचित कर देती है,

सपनों की गठरी...के अंतिम फूल,

उड़ेल आयी थी...मैं संगम में

कि काम आ सके कतरा कतरा 

मेरे सपनों का भी

और सुनती रहूं मैं वही वैदिक मंत्र,

बनारस के घाटों पर…'हर दान महादान'!

एक पत्ते पर...दिव्य जोत सी ,

इतराये मेरी तैरती रूह

और कामयाब हो जाए...मेरा मौन सफर!



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