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संजय असवाल

Tragedy

4.7  

संजय असवाल

Tragedy

मैं पहाड़ हूं!

मैं पहाड़ हूं!

1 min
761


मैं पहाड़ हूं 

जो खुशियों में झूम जाता था 

जब खेतों में 

मिलजुल कर 

हल चलाया जाता था,

मैं पहाड़ हूं 

जो खुशियों में नाचता था 

जब शादियों में 

ढोल दमाऊ,

मश्कबीन बजाया जाता था,

मैं पहाड़ हूं 

जो खुशियों में भी रोता था 

जब बहन बेटी को 

डोली में 

ससुराल विदा किया जाता था,

मैं पहाड़ हूं 

जो हरदम खिल खिलाता था 

जब गेहूं की मंडाई और घान रोपा जाता था,

मैं पहाड़ हूं 

तब मैं खूब रोता था 

जब बॉर्डर से मेरे बच्चों को 

तिरंगे में लिपटे लाया जाता था,

मैं पहाड़ हूं 

जो अब हरदम 

खामोश रहता है 

जब गांवों को उजाड़

घरों में ताले लगे देखता है,

मैं पहाड़ हूं 

जो सिसकता है 

पुरानी यादों को सोचकर,

वीरान बंजर खेतो को देखकर........!

रुकी बुझी बहती नदी देखकर.........!

सन्नाटे में खामोश

खड़े जंगलों को देखकर..............!

स्तब्ध मौन 

कोयल को देखकर........!

बूढ़ी आंखों को 

टकटकी लगाए देखकर......!

मैं पहाड़ टूटता हूं 

अपनों को याद कर, 

मैं बस उदास हूं 

अकेला हूं 

उम्मीद में बैठा हूं कि शायद 

तुम फिर से मुझे पुकारो 

और मैं खुशी खुशी

अनुगुंजित हो 

तुम्हें जवाब दूं,

अपना सर्वस्व 

तुम पर वार दूं,

तुम लौट कर आओ तो सही

मैं पलक फावड़े बिछाए बैठा हूं

एक लंबे इंतजार से,

पर तुम शायद भूल गए हो

अपना आशियाना

अपनी मिट्टी 

अपना ठौर ठिकाना,

रम गए हो तुम

दूर परदेस में

अपना वजूद बनाने,

पर नादान बड़े भोले हो

जिसकी जड़ें ही 

उखड़ चुकी हो

अपनी मिट्टी से,

उसका अस्तित्व भी कब तक बचेगा

टूट के भरभरा एक दिन 

ये ख्वाबों का दरख्त

पहाड़ बन गिरेगा,

जैसे मैं टूट रहा हूं 

रोज प्रतिदिन

एक सदी से 

अपनों के लिए..........!



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