STORYMIRROR

संजय असवाल

Abstract Drama Others

4.5  

संजय असवाल

Abstract Drama Others

इश्क धोखा है...

इश्क धोखा है...

1 min
323


मोहब्बत इश्क 

वे कहाँ जानते हैं

धोखा इसमें

वे कहाँ मानते हैं,

सच्ची मोहब्बत को

वे रुसवा करते हैं 

विश्वास में धोखा 

बस आम करते हैं।

जज्बातों से खेलते हैं 

छद्म भेष रखते हैं 

मीठी मीठी बातों से

दिल जीत लेते हैं,

बरगलाते हैं फुसलाते हैं

प्रपंच वो रचते हैं 

मोहब्बत, इश्क कह कर 

फिर दगा वे देते हैं।।

इरादों में उनके 

कुछ और ही फितूर होता है 

भावनाओं को कुचलने का 

इन्हें शौक होता है, 

ना मासूमियत की वो

परवाह करते हैं 

ना दिल की आह 

तनिक वो सुनते हैं।

इश्क उनके लिए 

महज एक खेल होता है

दो चेहरों में छिपा शख्सियत 

उन्होंने ओढ़ा होता है,

भूखे भेड़िए बन नर्म जिस्म की 

गंध जब वो सूंघते हैं

मंडराते हैं भौंरा बन

हर कली को चूमते हैं।।

झूठा प्यार झूठी मोह

ब्बत

का राग फिर गुनगुनाते हैं

रंगीन सपने बेचते 

सब्ज बाग आंखों में दिखाते हैं,

मासूमियत को कुचलते

अस्मिता को रौंदते हैं 

हवस की आग में अपनी

फिर उसे झोंक देते हैं।

फेंक देते हैं बीच राह 

वो मोहब्बत की निशानियां

खामोश रह जाती हैं 

फिर वो ढेरों कहानियां,

आंखों में अंसुवन की धारा 

अनवरत फिर बहती है 

बेबस सिसकियां 

फिर हर ओर सिसकती हैं।।

इज्जत तार तार कर

कलंकित रिश्ते को करते हैं

भरोसे को तोड़ वो

जख्म जिंदगी का देते हैं,

टुकड़े टुकड़े में बिखरी आबरू

दर्द में खो जाती है 

चीख दब जाती है

फिर कहीं किसी शोर में।

यहां पग पग पर धोखा है

न किसी पे यूं एतबार करना

दिल की सदाओं पर

तुम अपने काबू रखना,

ये इश्क एक धोखा है

इसे मत होने देना

किसी के झूठे इकरार में 

खुद को खोने मत देना।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract