मैं की पहचान
मैं की पहचान
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जबहम, हम थे तो खुश थे अपने सारे।
जो हम से मैं, मैं हुई रूठ गई दुनिया सारी।
मैं बनकर मैने कभी न सोचा,
हमपर लुटा दी ये जिंदगानी।
आज जरूरत आई तो दूरहो गये सभी हमारे,
मैं अकेली रहगई दूर हुई गलतफहमी हमारी।
ईश्वर ने भी मुझको मैं बनाकर भेजा था,
तभी हमारे दुःख दर्द का रिश्ता नहीं किसीसे जोड़ा था।
भूलगए थे हम इस मैं को,बीमारी ने याद दिलाया।
जो सहना है, मुझको सहना कोई काम नहीं आता है।
याद हुआ ये सबक तो अब हमको हम नहीं बनना है।
मैं बनकर ख्याल मुझे अबखुद अपना रखना है।