मैं कहीं कवि न बन जाऊं
मैं कहीं कवि न बन जाऊं
मैं कहीं कवि न बन जाऊं तेरे प्यार में ऐ कविता
मैं कहीं कवि न बन जाऊं.....
मेरा दिल लुभा रहा है चौपाई, छंद, दोहा
मुक्तक ने मेरे मन को मत पूछ कितना मोहा
तेरी हर विधा ने मेरे कविमन को आज मोहा
मैं कहीं कवि न बन जाऊं तेरे प्यार में ऐ कविता
मैं कहीं कवि न बन जाऊं.....
कभी छंदबद्ध लिक्खूं, कभी छंदमुक्त लिक्खूं
कभी कल्पना लिखूं मैं, कभी भावयुक्त लिक्खूं
जब भी लिखा करूं मैं तो विषय प्रयुक्त लिक्खूं
मैं कहीं कवि न बन जाऊं तेरे प्यार में ऐ कविता
मैं कहीं कवि न बन जाऊं.....
मैं भाव, अर्थ, रस से तेरा ऋंगार कर दूं
हर रूप में तुम्हारे मैं अलंकार भर दूं
सौंदर्य ऐ कविता तुझमें अपार भर दूं
मैं कहीं कवि न बन जाऊं तेरे प्यार में ऐ कविता
मैं कहीं कवि न बन जाऊं.....
रिपुदमन झा "पिनाकी"
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक
फिल्म - प्यार ही प्यार
धुन - मैं कहीं कवि न बन जाऊं