मैं कौन हूँ?
मैं कौन हूँ?


मैं कौन हूँ क्या हूँ, मैं कौन हूँ क्या हूँ
अपना वजूद पूछती रह गयी
दुनिया आगे निकल गयी
मैं खुद को ढूंढती रह गयी
कभी कभी डर लगता है
कभी अपना घर भी पराया
सा लगता है।
कुछ नहीं, मैं कुछ नहीं
मैं अपने आप में
यह खालीपन मुझ को,
कचोटने लगता है
दिल बड़ा नादान है मेरा
दिल बड़ा नादान है मेरा
कितनी शिकायतें रखता है।
हर कदम, लड़ रही हूँ मैं
हर कदम चल रही हूँ मैं ,
हर कोशिश कर रही हूँ
मैं पर क्या करूँ,
फिर भी चलते चलते गिर
रही हूँ मैं
मैं अब और चल नहीं
सकती बस थक गई हूँ मैं,
अपने साए के साथ,
साथ चलते चलते।
हर जगह मिली मुझे बेरुखी
मतलब परस्त संग दिल लोग
कब तक ढोऊ अपनी
अच्छाइयों, का बोझ
न समझा है न समझेंगे
इस जमाने के लोग
क्योंकि दिखावे की दुनिया,
दिखावे के लोग
न कोई भाई ना बहन ना
कोई बेटा न कोई दोस्त
हर रिश्ता मतलब से है
भरा पड़ा, मैं ये जानती हूँ
हाँ मैं ये जानती हूँ इस
रंग भरी दुनिया में
हर कोई मतलब से
भरा पड़ा है
हर कोई खाता है अपने
मतलब का भोग
अर्थहीन है ये दुनिया और
अर्थ हीन इसके लोग।।