मैं एक इंसान हूँ।
मैं एक इंसान हूँ।
ना मैं शायर हूँ ना मैं कवि हूँ
ना मैं चाँद हूँ ना में रवी हूँ।
मैं तो वो पानी हूँ जो हर रंग में मिल जाये
मैं तो वो रंग हूँ जो हर अंग में खिल जाये।
मैं तो वो ढंग हूँ जो हर ढंग में ढल जाए।।
मुझे इस तरह से न बांटो के मिल ना पाऊँ,
मुझे इस तरह से न कांटो के मैं जुड़ ना पाऊँ ।
मैं फूलों की खुशबू हूँ जो महका करती है,
चाहे कितनी कोशिश कर लो मुझे तुम खोज ना पाओगे।
मैं हवाओं में खाना बजा फिरती हूँ,
मैं वो माटी हूँ जो हर घर के आंगन में मिलती हूँ ।
चाहे कहलो मक्का चाहे समझो काशी,
इंसान हूँ मैं बस एक इंसान ,
ना बाँटो मुझको समझ के मिट्टी की मूर्त।