दीदी के ओल्ड क्लाथस
दीदी के ओल्ड क्लाथस


वो दीदी का पुराना फ्रॉक बहुत
भाता था मुझ को।
क्योंकि थी मैं सबसे छोटी वही
हिस्से में आता था मुझ को।।
वो स्कूल का हो यूनिफॉर्म या
हो ईद दीवाली के त्योहार।
पिछले साल के ही दीदी के
कपड़े बन जाते थे मेरे लिए
वो ही थे मेरा इनाम।।
हर साल बहुत खुश होती थी
मैं उनको पहन कर जैसे मानो
उनको पहनकर सिर्फ मेरा
ही हो नया साल।
मिलते क्यूँ न मुझ को नये
कपड़े ये भी था एक सवाल?
मम्मी से कहना दीदी के सुंदर
रंग बिरंगे कपड़े मुझ को है
पहनना ऐसे ही फिलहाल।
चाहे वो हो कपड़े या फिर
हो स्कूल की किताब।
या फिर हो बैग दीदी का
यह हो फिर उसका रुमाल।।
हम तो पहन कर उसको ही
बड़े हो गये और हो गये फिर
जवान फिर कॉलेज के दिन
आये तो मिल गयी दीदी की जींस।।
बहुत इतरा कर अपने दोस्तों को
बतलाती जैसे हो वो नई हसीन
पहनकर लगते हम भी उसको
बहुत हसीन।।
बस ऐसे ही गुज़र गया बचपन
और यौवन भी निकल गया।।
खुश होकर दीदी की साड़ी
हमने फिर फैयरवेल भी कर लिया।।
अब हम पहनते है अपनी मर्ज़ी से
खुद के कपड़े अच्छा तो बहुत
लगता है ।
पर मेरे दीदी के कपड़ों को
पहनने का वो बचपन का
आनंद नहीं मिलता है,
नहीं मिलता है।।