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Alfiya Agarwala

Abstract

2.8  

Alfiya Agarwala

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ज़मीन आसमान

ज़मीन आसमान

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कहाँ जमीन और कहाँ आसमां

मिलन ये कभी होता ही नहीं,

कहां शशि और कहाँ रवि

संगम ये कभी होता ही नहीं।


दीवारें दिलों की जब ऊँची हो जाए

फिर रिश्तों का गठबंधन संभव ही नहीं।

आईने की तरह साफ़- साफ़ दिखाई

दे चुका है तेरे मन का कटु सत्य।


पारदर्शिता की तुझसे उम्मीद

लगाना संभव ही नहीं।

ज़हर जो बौ दिया है उसने

हमारे सीनों में उसको,

भूलाना संभव ही नहीं।


जब पेड़ बबूल का बोया

तो आम की आस लगाना

संभव ही नहीं।


करो तुम या मुझे करने दो,

करो तुम या मुझे करने दो,

अब सोच और विचारों में

क़दम को पीछे

हटाना संभव ही नहीं।


उठो तुम या मैं फिर आगे बढ़ू,

तुम्हारे जैसे कायरों से

फिर हाथ मिलाना संभव ही नहीं।


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