मैं एक पंडित कश्मीरी
मैं एक पंडित कश्मीरी
मुझे तेरी रजा से मेरे घर से निकाला गया
कितना है सच मुझको मालूम नहीं
पर वो तेरे घर से, तेरे दर से रोज मुझे डराते थे
लाउड स्पिकर से कहते थे, घर खाली करो
तू गर नहीं था वहाँ तो कौन था,
जिसने तेरे नाम पर मुझको मेरी जड़ों से काट डाला
या फिर तुझे, तेरे घर से निकाल फैंका था ?
या फिर सदियों पुरानी आदत से मजबूर था तू
की कोई शांति प्रस्ताव नहीं, जब तक सर्वनाश सिर पर ना हो
कोई तो था तेरे घर पर कब्जा कर बैठा था
अब किराया देता हूँ मैं, मकान दर मकान
घूमता रहता हूँ एक मूकाम की तलाश में
मैं तेरी जन्नत से आदम सा निकला हूँ
पंडित मैं, वो भी कश्मीरी।।