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Sarbani Daripa

Drama Classics

4  

Sarbani Daripa

Drama Classics

नचिकेता

नचिकेता

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वेद मंत्र की ध्वनि थी 

गुंजारित हर दिशा थी।

महर्षि वाजश्रवा थे लीन

यज्ञ यह विश्वजीत थी ।।


पूर्णाहुति के उपरांत 

वाजश्रवा करने लगे दान 

प्रतिज्ञा सर्वस्व दान की थी ।।


छोटा-सा बालक वह 

निहारे पिता को।।

कर रहे है क्या यह पिता महान ?        

बूढ़ी और अबला गायों का दान?  

उपयोगिता क्या इनकी?  

यह कैसा दान?

कैसा आश्चर्य पिता?

यह कैसा दान?


रह न पाया स्थिर वह 

प्रश्न थे उसके भारी!

पूछा पिता से

शीश झुकाये,

'हे पिता कहो -

कब आयेगी मेरी बारी?

सर्वस्व दान का वचन है,

मुझसे प्रिय आपके लिए कौन है ?' 


कहो ना पिता-

किसे करेंगे आप मेरा दान?

किसे करेंगे आप मेरा दान?


हठ यह बालक करे बार-बार

क्रोधित हो वाजश्रवा झल्लाये।

और कहा- 

'हठी बालक'

जा मैंने तुझे 

यम को किया दान।।'


पितृआज्ञा कर 

शिरोधार्य,

चला वह निर्भीक 

यम का राज्य।


पहूंचा जब यम के द्वार 

यमदूतों से हूई मुलाकात।।


अचम्भित दूतों ने देखा गौर से 

यह बालक कौन ? यहां कैसे? 


बोले, 'जीवनकाल अभी पूरा नहीं हूआ तेरा

तू बालक क्योंकर यम के द्वार पर खड़ा?' 


तुझे प्रवेश की अनुमति नहीं 

वैसे भी, यमराज

आज यमलोक पर नहीं। 

आयेंगे अभी दो चार दिनों में 

तू लौट जा अब अपने भवन में।


बालक था, अटल, निश्चल

कहा, 'न लौट पाऊंगा

मेरे पिता हैं प्रतिज्ञावद्ध,

और मैं उनकी आज्ञावद्ध।'


तीन दिन बीते भुखे प्यासे 

चौथे दिन यमराज पहूंचे।   

देखा छोटा-सा बालक

बैठा द्वार पर।  

सुनी कथा सारी  

विस्तार पूर्वक।


यमराज हुए आपुलित 

देख इस पितृभक्त को।

कहा,

'हे ऋषिकुमार, 

बड़ा प्रसन्न हूं आज, मैं तुम पर, 

तीन दिन से भूखे भुखे-प्यासे तुम

मांग लो मुझसे कोई तीन वर।'


कर प्रणाम यमराज के चरणों में  

प्रथम वर मांगा उस बालक ने।


'प्रभु,

पिता का क्रोध अब शांत कर दो ।

मुझे पहचान ले बस यह वर दो।।'


कहा, 'तथास्तु।' 

और यमराज बोले,

'दूसरा वर अब तू मांग ले।'


'प्रभु स्वर्ग मिले कैसे?

दे दो मुझे यह ज्ञान 

किस राह चले मानव 

जो मिले देवलोक में स्थान।'


निस्वार्थ बालक के प्रश्न से

प्रफुल्लित यमराज कहे, 

'एक सत्य ही है 

बस स्वर्ग की राह 

इसी मार्ग पर बस 

चलता रहे इंसान।


मांग ले तू कुछ अपने मन की

तीसरा वर अब रह गया बाकी।'


'प्रभु प्रश्न है मेरे बस दो-तीन,    

उत्तर दो तो धन्य हो यह नवीन।'

     

यमराज कहे, 'प्रश्न पूछो वत्स 

मैं उत्तर देने को प्रतिबद्ध।'


'तो सुनो प्रभु मेरा ये प्रश्न    

मृत्यु क्या है? क्यों होती है?

मृत्यु के उपरांत 

कहां जाते मनुष्य हैं?'


अचंभित यमराज 

सुन बालक के प्रश्न    

कहा, 'जो चाहो मांग लो 

ये प्रश्न मत पूछो ।'


एकाग्र चित्त बालक अटल  

हाथ जोड़ें बोला, 'प्रभु, 

तीसरा वर अगर देना है आपको

बस एक यही रहस्य समझा दो।'


उसकी यह लगन देखकर 

प्रसन्न यमराज हंस कर

दिये परमज्ञान 

"आत्मज्ञान" उसको।


गदगद नचिकेता हो नत मस्तक     

चरणस्पर्श करने को हुआ तत्पर। 

लगाया गले यमराज ने तब

कहा, 'वत्स  नचि

जाओ अब अपने घर।।'


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