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Sarbani Daripa

Inspirational

4.8  

Sarbani Daripa

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नारी अब मूर्ति नहीं बस है इंसान !

नारी अब मूर्ति नहीं बस है इंसान !

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नारी ,

जब तक तुम पत्थर नहीं बनती

पूजी नहीं जाओगी।

क्यों करती हो यह जद्दोजहद?

इंसान बनके जीने की ज़िद ?

भ्रम है, यह तुम्हारा कि 

जीते जी सम्मान पाओगी?


पल पल पड़ेगा मरना

कीमत पड़ेगी चुकानी

लहूलुहान कर छलनी कर देंगे

बिलख के रो भी ना पाओगी।

तेरे आत्मसम्मान की बोली लगायेंगे

तेरे अपने ही तुझे चीर के रख देंगे।

तो बेहतर है तुम बुत बन जाओ।


क्यों इंसान बन के प्यार लुटाती हो?

क्यों देती किसी को स्नेह?

करती रहती हो आत्मत्याग !

सब व्यर्थ है कोई मोल नहीं तुम्हारा

सीता को भी कूण्ड में समाना पड़ा

पूजे जाने के लिए मूरत ही बनना पड़ा।


तो नारी 

कैसे समझाओगी इस समाज को

क्या मिटा पाओगी स्त्री पुरूष के विभेद को?

यहां तो मां ही करती है विभेद

बेटी का हक छीन कर करती है बेटे को समृद्ध।


यह अस्तित्व की लड़ाई है नारी

क्या तुम लड़ पाओगी?

नारी मूर्ति नहीं इंसान हैं

क्या जग को समझा पाओगी??


खो दो अपनी सारी अनूभुति

फैला लो अपने केश

प्रण ले लो अब न समेटने की

अपमानित अब न होने की।


नारी,

याद है न तुम्हें याज्ञसेनी।

कर दो हर अग्निपरीक्षा से इन्कार

पत्थर नहीं अब वह्निशिखा है तैयार।


नारी अब मूर्ति नहीं बस है इंसान ।

नारी अब मूर्ति नहीं बस है इंसान ।।



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