आखिरी सलाम
आखिरी सलाम
दुश्मन के अग्निबाण से जब घायल हुआ हिमालय था।
देश रक्षा को जो चल पड़ा,रणबांकुरा वो प्यारा प्यारा था।।
लाख शूल पग पर चुभे,मां की रक्षा वो बढ़ता ही गया।
छलनी कर दुश्मन का सीना,शत्रु का हर दुर्ग ढहाता गया।।
मस्तक पर तिलक पावन रज का,मुख पर वंदेमातरम का नारा था।
देशभक्ति का वो बासंती चोला,उसने तन मन पर धारा था।।
हर एक कदम पर ढेर वो अनगिनत शत्रु करता गया।
अंतिम सलाम धरा को कर,वो धरा के अंक में ही सो गया।।
अनगिनत थे ऐसे सेनानी,वीर गाथा जो लिख गए।
शहीद धरा पर हो,वो धरा के वीर लाल हो गए ।।
श्रद्धा भाव हम लिए,उन्हें अनगिनत सलाम करते हैं।
पदचिन्हों से तेरे सीख,बस तेरी राह ही हम चलते हैं।।