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Sarbani Daripa

Abstract

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Sarbani Daripa

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माया

माया

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उसने कहा- "सब माया है"

मैने पूछा-  "कौन बच पाया है"

उसने कहा- मुक्तता में सिद्धता है,

बाकी तो बस व्यर्थता है।


मैंंने पूछा- माया बिना संसार क्या ?   

रिश्ते क्या ? समाज क्या ?

माया बिना तो सब अधूरा है !

बोलो कौन बच पाया है ?


उसने कहा- यही तो मनुष्य की परीक्षा है

 इसी में सारी सार्थकता है ।

मैंंने पूछा- माया भी तो उसी मायाकार की रचना है ?

 फिर क्यों यह विडम्बना है ?


मुस्कुराये योगी और बोले-    

माया नहीं, माया नहीं,    

उसके 'जाल' पर निशाना है

'प्राणी'


बस इसमें फँसना मना है

बस इसमें फँसना मना है।।


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