बदूइन सा फिरती हूं
बदूइन सा फिरती हूं
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बदूइन सा फिरती हूं
अब मैं "मैं" को ढूंढ़ती हूं।
खो गई हूं जीवन मरू में
चल रही हूं तप्त रेणु में,
मृगतृष्णा में भटकती हूं
बदूइन सा फिरती हूं।
माया की मरिचिका ने घेरा
नज़रें ढूंढ़े शाद्वल वह रब मेरा,
रबाब की धुन में गाती हूं
बस बदूइन सा फिरती हूं।
कहां पता था मेरे "मैं" में
तू छूपा था मेरा बन के,
अब मैं पनाह लेती हूं
अब "मैं" "तुम" बन जाती हूं।