स्वार्थ की दुनियां
स्वार्थ की दुनियां
इस रंग बदलती दुनियां में,
इंसान भी ऐसे देखे है।
जो तेरे मुंह पे तेरे हैं,
वो मेरे मुंह पे मेरे हैं।
कैसे करें हम इंसा पे भरोसा,
जो पलभर में मुंह फेरे हैं।
इस रंग बदलती दुनियां में,
इंसान भी ऐसे देखे है.....
एक इंसा ही इस धरती पर,
दर्द दिल का बताने को।
वह समझ लेता है दर्द इंसा को,
लेकिन दर्द दे भी जाता हैं।
उस इंसा का क्या करें,
जो दर्द समझ ले फिर भी दे दर्द।
मुंह पीछे वह खिल्ली उड़ाये,
जब सामने हो तब बने हमदर्द ।
इस रंग बदलती दुनियां में,
इंसान भी ऐसे देखे है।
इंसा को विधाता ने भेजा धरती पर,
दर्द मिटाने इंसा का।
मगर इंसा ने आकर धरती पर,
गिरगिट सा है तन ढका ।
कहते है गिरगिट माहिर है,
अपना रंग बदलने में।
लेकिन इंसा ने गिरगिट को भी,
शर्मा दिया रंग बदलने में।
इस रंग बदलती दुनियां में,
इंसान भी ऐसे देखे है।
किस किसने भरोसा नहीं तोड़ा,
विश्वास जो करके देखा हैं।
इंसा को दिल समझाना होगा,
इंसा का इंसा से लेखा हैं।
तूं अपने बल पर आगे चल,
मत कर भरोसा इंसा का ।
इक ईश्वर की ही लाठी है,
जो तैरी नैय्या पार करे।
इंसा ने इंसा को न समझा,
जिसने इंसा का बेड़ा गर्क किया।
बस इंसा ने ही इंसा को,
न चाहने वाला दर्द दिया।
इस रंग बदलती दुनियां में,
इंसान भी ऐसे देखे है।
कहे ऋषि ये इंसा तेरे मुंह पे तेरे हैं,
वो मेरे मुंह पे मेरे हैं।