रंग बदलती दुनिया में रिश्ते
रंग बदलती दुनिया में रिश्ते
रिश्तो पर मेरी अभी बनाई तुकबंदी....
इस रंग बदलती दुनिया में रिश्तो को मरते देखा है,
इस रंग बदलती दुनिया में रिश्तो को तरसते देखा है।
इस रंग बदलती दुनिया में रिश्तो को सिमटते देखा है।
इस रंग बदलती दुनिया में रिश्तो को बदलते देखा है।
इस रंग बदलती दुनिया में रिश्तो को बिगड़ते देखा है।
इस रंग बदलती दुनिया में रिश्तो को सिसकते देखा है।
इस रंग बदलती दुनिया में रिश्तो को मरते देखा है।
इसे रंग बदलती दुनिया में रिश्तो को मुरझाए देखा है।
इस रंग बदलती दुनिया में रिश्तो को फफकते देखा है।
इस रंग बदलती दुनिया में रिश्तो को रोते देखा है।
इस रंग बदलती दुनिया में रिश्तो को गहरी नींद में सोते देखा है।
क्योंकि.....।
रिश्तो को पराई कैंची से कटते हुए देखा है।
रिश्तो को पराई थाली में बैठे हुए तो देखा है।
रिश्तो की खींचातानी में परायो को आते देखा है।
जब गैर- पड़ोसी आते हैं रिश्तो को मरते देखा है।
जब रिश्ते दुश्मन बनते हैं,
गैर पड़ोसी हामी भरते हैं।
जब रिश्तो में लालच आता है,
तब रिश्ते दुश्मन बन जाते हैं।
जब रिश्तों में खींचातान हुई तो,
रिश्ते गैर और गैर अपने हो जाते हैं.सम्भलकर रहना..।
जब हम रिश्ते अपने संभाल न सके,
तो गैर अपने कैसे हो पाएंगे।
हां सोचो, हां सोचो...फिर गैरों के भरोसे कैसे हम जी पाएंगे।
हां नहीं भरोसा करना गैरो का,
गैरों के भरोसे मत रहना,
अगर रिश्ते अपने हो न सके तो,
गैरों के भरोसे मत रहना।
देखो अपने चारों ओर...।
भला क्या गैरों ने रिश्तों को जोड़ा है ?
जब जब भी मौका मिला उनको,
उनने रिश्तो को तोड़ा मरोड़ा है।
जब भी रिश्ते बुनने को होते,
तब तब बनते रोड़ा है।
भला गैरों ने कब रिश्तो को जोड़ा है।
