रिश्ते है रिश्तों का क्या
रिश्ते है रिश्तों का क्या
रिश्ते हैं, रिश्तों का क्या ?
रिश्ते अब सस्ते हो गये,
पल में बन गये, पल में बिखरे,
फिर भी किसी को न ये अखरे।
रिश्ते भी बाजार है बन गये,
चाहे जो आये,चाहे जो जाये।
अब रिश्तों का क्या लेना देना,
रिश्ते भी पूछे अब क्या है देना।
पहले रिश्तों की प्यास थी होती,
नानी दादी, मौसी भुआ बाट थी जोती
अब ताे जाने की बाट हैं जोहते,
भूल जाओ तो कह भी देते।
यहां तक भी है याद दिलाते,
आपके भी है काम तो ज्यादे,
इसलिए हम जाने की याद दिला दें।
वाह रे रिश्ते बाजार जो बन गये,
काम हुआ और मुंह भी फिर गये।
आड़े दिन जब मिल भी जाते,
लगता है कभी मिले हुए हैं।
रूखे-सूखे अभिवादन मिलते,
समझ गये और चल भी देते।
लगता ऐसा नहीं अभी कोई काम हैं,
दोड़ो अब तो रिश्तों में हो गयी शाम हैं।
रिश्ते भी अब कैसे हो गये,
रूखे-सूखे बहरे-गूंगे,
जरूरत पड़ी तो सजग हो गये,
नहीं तो गहरी नींद में उंघे।
रिश्तों भी अनमाेल हैं होते,
जीवन में रंग हैं भरते।
रिश्तों से जुड़ते है परिवार,
लेते हैं सुख का आकार।
रिश्तों की मासूमियत को समझें,
रिश्तों को यूं भार न समझे।
रिश्ते हैं रिश्तों का क्या,
रिश्ते हैं तो हैं संसार।
रिश्तों से महकती खुश्बु,
इसको न समझो भार।
इस अर्थयुग का नहीं कोई आधार,
रिश्ते हैं तो बने मजबूत आधार।
रिश्ते नहीं मिलते जग में उधार।
जो बनके आये हैं रिश्ते,
उनको समझे यूं न सस्ते।
रिश्ते हैं जीने का मौलिक अधिकार,
यूं न समझो इसे बेकार।
रिश्ते है, रिश्तों का क्या,
रिश्तों में सिमटा है संसार।