वक्त
वक्त
वक्त भी बड़ा अजीब है.....
वक्त किसी का खास नहीं, वक्त किसी के पास नहीं।
वक्त का कोई खास नहीं होता,
पर खास है गर कोई, उसके लिए वक्त हो जाता हैं।
वक्त से पूछा कि यह भी कोई बात हैं।
खास हो तो वक्त ही वक्त,
आम हो तो वक्त भी नहीं।
वक्त ने कहा मैं वक्त हूं,
बेवक्त किसी का खास नहीं होता।
जिसका वक्त होता है, मै उसका हो जाता हूं।
वक्त अपना है तो सब अपने है,
वक्त अपना नहीं तो अपने भी पराये हो जाते हैं।
मैने वक्त से कहा तूं इतना बेदर्द, बेशर्म कैसे हो जाता है?
वक्त ने जवाब दिया आज इंसान भी इतना बेकदर हो गया कि,
वक्त की उसको कदर नहीं तो मैं क्यों करू किसी की कदर।
इंसान भी आज इतना बेदर्द व बेशर्म हो गया तो मैं तो वक्त हूं।
मेरा कोई सगा नहीं, मेरा कोई पराया नहीं।
जिसने मुझे समझा, मैं उसका हो गया,
वक्त ने कहा मैं कैसे बेवफा हो गया।
वक्त ने कहा मैने वक्त से पहले लोगो को ताज पहनाये,
मेरी किसी ने कदर नहीं की तो वक्त से पहले उतार भी दिये।
यह वक्त है दाेस्तों,
वक्त अपना है तो सब अपने हैं,
वक्त अपना नहीं तो सब पराये हो जाते हैं।
