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संजय असवाल

Abstract Fantasy Others

4.7  

संजय असवाल

Abstract Fantasy Others

मैं भी मन की बात करूं...!

मैं भी मन की बात करूं...!

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265


कभी खामोश बैठे इधर उधर 

बस तकता फिरूं,

कभी पिता की उंगली पकड़े 

फिर से मैं बचपन जियूं,

मेरा भी मन करता है 

मैं भी मन की बात करूं।

कभी हंसूं, कभी रोऊं 

कभी मां की गोद में 

सर रख खूब सोऊं 

मेरा भी मन करता है

मैं भी मन की बात करूं।

कभी खूब शरारत करूं

बस अपने मन की करता रहूं

कभी पतंग बन 

दूर आसमान में उड़ता रहूं,

मेरा भी मन करता है 

मैं मन की बात करूं।

कभी हिरनी बन 

वन में कुलांचे भरूं 

कभी चिड़ियां बन

ची ची चूं चूं करता फिरूं,

मेरा भी मन करता है 

मैं भी मन की बात करूं।

कभी नदियां बन शांत

कल कल बहता रहूं

कभी भौंरा बन 

मैं बगिया में गुंजन करूं,

मेरा भी मन करता है 

मैं मन की बात करूं।

कभी तितली बन 

फूलों का रस मैं पियूँ,

कभी छुईमुई सी खुद में

मैं अक्सर सिमटता रहूं,

मेरा भी मन करता है 

मैं मन की बात करूं।

कभी इत्र बन हवा में 

मैं दूर तक बिखर जाऊं,

कभी ओस की बूंद बन

मैं सीप में मोती बन जाऊं,

मेरा भी मन करता है 

मैं मन की बात करूं।

कभी पहाड़ों पर कोहरे की 

चादर सा छा जाऊं,

कभी समुद्र की गहराइयों में 

उतरकर मैं शांत हो जाऊं,

मेरा भी मन करता है 

मैं मन की बात करूं।


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