मैं और मेरी आश
मैं और मेरी आश
मैं तो मूर्खो का सरताज
मैं करूं क्या अपनी बात
मैं आया तेरे द्वार; प्रभु
कर लो न स्वीकार, स्वामी; कर लो न स्वीकार।।
मैं ग्रस्त हूं पाप हजार
कैसे हो मेरा उद्धार
तुम सुन लो मेरी पुकार; प्रभु
कर लो न स्वीकार, स्वामी; कर लो न स्वीकार।।
मेरा कामी, क्रोधी सा जीवन सार
करता सब पर अत्याचार
कभी न दुख से पाया पार; प्रभु
कर लो न स्वीकार, स्वामी; कर लो न स्वीकार।।
मैं विनती करता बारंबार
बीती जाती जिंदगी यार
अब तुम पे लगी मेरी आश; प्रभु
कर लो न स्वीकार, स्वामी; कर लो न स्वीकार।।