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Jalpa lalani 'Zoya'

Tragedy Inspirational Children

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Jalpa lalani 'Zoya'

Tragedy Inspirational Children

मैं अध्यापिका बन गई

मैं अध्यापिका बन गई

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मेरी भी हज़ारों हसरतें थी,

मुझे कोई और नौकरी करनी थी,


पर कैसे करती ख़्वाहिशें पूरी,

घर में पापा-भाई की जो चलती थी।


फ़िर क़िस्मत ने एक दिन दस्तक दी,

और मैं अध्यापिका बन गई।


नौकरी तो मेरी थी बड़ी प्यारी,

बन गई थी मैं बच्चों की जो परी।


ईश्वर की कृपा से पाई थी ये अनमोल नौकरी

जिसकी हर एक यादें है बड़ी सुनहरी।


तब क़िस्मत मेरी ज़्यादा ही ज़ोर कर गई,

दूर नहीं थी स्कूल मेरी, बस एक छोड़ कर दूसरी गली।


सुबह सवेरे जाना होता, दोपहर तक तो वापसी होती,

बच्चों के संग बच्चा बन जाती, हर दिन एक नई चुनौती।


कभी-कभी समस्याएं भी आती छोटी-मोटी

हर हफ्ते लेती थी मैं, बच्चों की कसौटी।


बच्चों का वो प्यार से पुकारना, टीचर,

जैसे हो जाती थी मैं स्कूल में फ़ीचर।


मेरे जीवन का था वो ऐसा अवसर,

जैसे यह नौकरी बन गई थी मेरी हमसफ़र।


एक और बार क़िस्मत ने पलटी खाई

नौकरी से लेनी पड़ी मुझे बिदाई।


लगता है जैसे कल ही है छोड़ी

पर नौकरी छोड़े पूरे दो साल गए बीत।


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