माया रूपी शैतान
माया रूपी शैतान
मिला किसी मोड़ पर
वो अजनबी मुझे
बहलाता रहा जो ताउम्र मुझे
माया रूपी शैतान अट्टहास करने लगा
दुनिया की भीड़ में मुझे भ्रमित करने लगा
कहने लगा मैं बहुत बलवान हूं इस जग में
भटकाव की राह दिखाता हूं पग-पग में
कोई भी इंसान मुझसे अछूता नहीं है
स्नेह है व्यवहार मेरा क्रूरता नहीं है
मुझसे ही तो संसार का चक्र चलता है
भ्रमित इंसान सदा मुझसे ही पलता है
ना करता मैं भेदभाव किसी से, ना कोई बैर
ले चलूं वहीं जहां आनंद में हों स्वजन और गैर
माना है काल्पनिक दुनिया और हैं क्षणिक सुख
मगर मेरी शरण में आकर नहीं रह जाता कोई दुख
माया रूपी शैतान हूं मैं, सबको सुख देना मेरा काम है
हूं इस नश्वर संसार में हितैषी केवल, भ्रम मेरा नाम है...।