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मासूमियत

मासूमियत

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आज फिर इक मासूमियत तड़प गयी,

आज फिर वो हैवानियत हो गयी।

न जाने हवस की भूख़ कितनी है कि

आज फिर इंसानियत शर्मसारित हो गयी।।

जिसे अंकल कहती थी वो प्यारी

उसी दरिंदे ने उसकी मासूमियत छीन ली।

कितना गिरेगा तू इंसान पता नहीं

तूने तो अपनी ज़मीर तक बेच दी।।

क्या घर की लाडली स्कूल भी न जाये,

क्या तेरी बेटी भी यूँ ही शिकार हो जाये।

आख़िर कब समझेगा तू उस वेदना भरी जर्द चीख़ को

क्या नन्हीं-सी कली खिलना भी भूल जाये।।

अपनी बेटी के हमसफ़र बन जाईये,

ज़रा-सा उनके साथ भी जिंदगी जी लीजिये।

यूँ न उलझिए ज़िन्दगी के ताने-बाने में

ज़रा-सा उनके लिए भी वक़्त बिता लीजिये।।


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