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Anushree Goswami

Drama Tragedy

5.0  

Anushree Goswami

Drama Tragedy

मासूमियत

मासूमियत

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मासूमियत! न जाने कहाँ खो गई,

खुद को भूलकर कहीं सो गई,

अरे कोई तो जगाओ, उठाओ उसको,

बचपन के कंधों पर, काम के बोझ ढो गई।


शैतानों की भीड़ में,

अकेली पड़ गई,

गाँव की सोंधी मिट्टी से,

शहर की मटमैली धूल बन गई।


चेहरे की चमक, आँखों की मुस्कान,

हृदय का सच्चा, मन का बलवान,

वह मासूम बच्चा न जाने कहाँ चला गया,

मूक बनकर सो गई, मासूमियत कहीं खो गई।


किसी महापुरुष ने कहा था-

"काश इस दुनिया में कुछ तो अच्छा रहने दिया जाए,

ऐ खुदा बच्चों को बच्चा ही रहने दिया जाए"

अब तो यह पंक्तियाँ भी फीकी पड़ गईं।


मासूमियत! न जाने कहाँ खो गई,

मासूमियत! न जाने कहाँ खो गई।


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