मानवता
मानवता
मानव मूक बधिर हुआ, पंगु हुई मानवता
चहुँ ओर फैला भ्रष्टाचार, लुप्त हुई नैतिकता।
इंसानियत और मानवता, धर्म है सबसे बड़ा
धर्मो की लड़ाई में, फिर क्यों देश बटा पड़ा।
हो रहा है चीर हरण, मूल्यों और संस्कारों का
मानव हो रहा शिकार, कुरितियों औ अनाचारों का।
हो रहे है इंसानी रिश्ते, स्वार्थी और कलंकित
इंसान पल मे रंग बदलता, हो जैसे गिरगिट।
मां बाप को बोझ समझ, भेज रहे हैं वृद्धाश्रम
कहां खो गई मानवता कहां खो गया अपनापन।
मानवता को ताक पर रख, अहम का हुआ है राज
मानव अपने दुष्कर्मो से, शर्मसार करता मानवता को आज।
सच खुदकुशी कर रहा, सम्मानित होता झूठ
बाजार झूठ का पनप रहा, मानवता गयी रूठ।
कब तक सहेगी मानवता, ऐसे ऐसे आघात
कोई शान्तिदूत पैदा हो, करे शान्ति का प्रभात।
ऊँच नीच जाति पाति की,दीवारें सब तोड़ दे
करे कुछ काम ऐसा, मानव को मानव से जोड़ दे।
भावना और संवेदना, है मानव की पहचान
सरल सभ्य व्यवहार हो,रखो मानवता का मान।
मानवता मानव का मूल मंत्र,रखो सदैव याद
बुद्धि और विवेक का, कभी न तजो साथ।