मानव या मशीन
मानव या मशीन
लगता है मशीनों के साथ रहते-रहते,
मानव भी मशीन हो गया है।
मशीन जैसे सोना-जागना,
मशीन की तरह दिन भर भागना।
मन का संतोष कहीं खो गया है,
मानव भी मशीन हो गया है।
मशीन न दुख में दुखी होती है,
न सुख में खुश, न कोई दर्द, न कोई भाव
उसी तरह मानव का मन भी सो गया है,
मानव भी मशीन हो गया है।
पर मशीनों में भी खराबी आती है,
उनकी धार कम पड़ जाती है,
वो भी चलते-चलते रुक जाती हैं।
ए मानव तू भी जीवन जी...
एक जीव की तरह।
तेरा मन हो प्रेम, करुणा और दया से भरा।
एक समय ज़रूर आएगा,
जब समय कहेगा,
तेरा जीवनकाल पूरा हो गया है।
हे मानव, जी ले इंसान की ज़िंदगी फ़िर से,
तू क्यों मशीन हो गया है?