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Indu Kothari

Tragedy Others

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Indu Kothari

Tragedy Others

मानव तुमसे एक सवाल

मानव तुमसे एक सवाल

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कहे वृक्ष- मानव से

हे मानव !‌

मेरा तुमसे गहरा नाता

तू सारा सुख भी मुझसे पाता

मैं वर्षा धूप से ‌तुम्हें बचाता

मीठे फल भी मेरे खाता ।

लेकिन फिर क्यों?

        तू नोच के पत्ते सब ले जाता

        निर्वसन है, कर जाता

        ठिठुरन में मैं रात बिताता

        हंसकर दर्द मैं सह जाता। ‌ ‌

लेकिन फिर भी क्यों?

तू मन को मेरे है तड़पाता

प्यारा कानन है दहकाता

देह को मेरी तू झुलसाता

चाल तेरी मैं समझ न पाया

लेकिन आखिर क्यों?

         देख कुल्हाड़ी तेरे हाथ

         कांपे थर-थर मेरा गात ।

         प्राण वायु मैं तुमको देता

         बदले में कुछ भी नहीं लेता

   ‌लेकिन आखिर क्यों

   था कितना सुंदर जीवन मेरा

   शाखों पर चिड़ियों का डेरा

  जब फलों से मैं‌ लद जाता

   खुश हो मस्ती में लहराता

   पर मेरी व्यथा सुनेगा कौन?

   मानव तू सदियों से मौन।

      

      


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