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अमित प्रेमशंकर

Tragedy Crime

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अमित प्रेमशंकर

Tragedy Crime

मानव बना दानव

मानव बना दानव

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रे पापी, रे निर्लज्ज दानव

तुझे तनिक दया न आया रे

मद होकर तू मानवता में

फिर से दाग लगाया रे.…..!!

एक अनबोले सभ्य जीव पर

कैसा क़दम उठाया रे....

बारूद भरकर अनानास में

छल से तू खिलाया रे...!!

समझ तुझे वो दयावीर

तेरी दृष्टता समझ न पाई रे....

प्रलयकारी बारूद से वो

खुद को बचा न पाई रे.....!!

भूख, प्यास और दर्द से व्याकुल

भाग नदी में आई रे....

फिर भी अपने गर्भ को न

खुद को बचा हीं पाई रे....!!

दंड मिले तुझे इस कर्म का

पाप का बोझ उठाया रे...

मद होकर तू मानवता में

फिर से दाग लगाया रे...!!



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