माँ ,दे इजाज़त
माँ ,दे इजाज़त
माँ,जब-जब पलकें मूँदती हूँ
तो डर लगता है
अगली बार तुझे देख पाऊँगी कि नहीं
माँ,तेरे गोद में सोते ही
डर लगता है
अगली बार सो पाऊँगी कि नहीं
माँ,तेरी बेटी अब थक चुकी है
ज़िन्दगी से लड़ते-लड़ते
मन में जीने की ललक है
यही बात कहते-कहते
माँ,क्या इतना मुश्किल है
भाग्य से जीतना
हर पल टकराना और फिर
हार कर लौट जाना
माँ,मेरी किस्मत तेरे प्रेम सी
क्यों ना है
क्यों तोलती ही साँसे,सागर सी
क्यों ना है
माँ,तेरे खिलाय हर निवाले पर
मेरी आँखे भर जाती है
माँ,बता क्या निकली हुई साँसे
फिर लौटकर आती है?
तू अब बस कर रो-रोकर मुझे रोकना
ये दर्द सहा नहीं जाता है
चैन से आँखे मूँद लूँ
हर पल जी चाहता है
तो दे इजाज़त परायी बेटी को
नाजों से पाला जिस निरमोहि बेटी को
चली जाऊँगी दूर मुड़ कर ना देखूँगी
हाँ कर्म होंगे अच्छे तो लौट तेरे पास आउंगी।