मां बाबा सा प्यार कहीं नही
मां बाबा सा प्यार कहीं नही
छोड़ के आए हम वो गालियां
जहां बचपन अपना बीता था
छोड़ आए वो घर आंगन
जो हंसी से हमारी जीता था
मां बाप और भाई बहन
सखी सहेलियों का संग भी छूटा है
जैसे कोई खिलता फूल
डाल से अपनी टूटा है
पीहर की सब अल्हड़ता
सब नाज़ हमने छोड़ दिया
जिम्मेदार पत्नी और बहू का
लिबास जैसे कोई ओढ़ लिया
बात बात पर खिलखिलाने वाली ने
खामोशी की चादर तानी है
एक बहू , पत्नी बनने की
क्या कीमत होती ये आज जानी है
जब मुंह अंधेरे उठती हूं
और रात घनेरी सोती हूं
तब मां तुझे मैं याद करके
अकेले में चुपके से रोती हूं
सबकी फरमाइशें पूरी करती
अपनी इच्छाएं जब दबाती हूं
तब तब बाबा तुझे याद कर
सो सो मौत मैं मर जाती हूं
बन सके जो पीहर बेटी के लिए
ऐसा जग में कोई ससुराल नहीं
मां बाबा सा इस जग में लाडो को
कर सकता कोई प्यार नहीं।