मालिक और मजदूर।
मालिक और मजदूर।
प्रवासी मजदूर
घरों से दूर
थक कर चूर
कितना मजबूर
एक ही इच्छा मन में रखता
काश तुम्हारा काम बड़े
तो ही उसको काम मिले।
सिर्फ वही है जो सदा सोचता तुम्हारे लिए बहुत ही अच्छा।
हर मुसीबत का साथी वह।
सिर्फ मजदूर ही है जिसके कारण कि कोई साहब है बनता।
यदि मजदूर ना करें काम तो हर साहब मजदूर ही बनता।
मजदूर को भी
घर की घर में कभी काम ना मिलता।
दूर किसी के परिवार का हिस्सा हमेशा वह बनता।
परमात्मा ने दी है शक्ति उसको
तभी तो वह पत्थर भी आसानी से तोड़ सकता।
मजदूर और मालिक फर्क कोई खास नहीं।
परमात्मा के राज में बराबर है दोनों ही।
एक भरी रखी है बोरी अनाज की।
मालिक खरीद सकता है पर सौ बीमारियों के चलते
वह उसे खा नहीं सकता, उठा नहीं सकता।
मजदूर उठा सकता है, यहां से वहां कंधे पर रखकर ही ले जा सकता है
लेकिन अपनी गरीबी के चलते उसे आसानी से खरीद नहीं सकता।
एक दूसरे के पूरक हैं दोनों
बस इतनी सी बात समझ जाएं दोनों,
तब मालिक और मजदूर में शाश्वत प्रेम को कोई मिटा नहीं सकता।