लव (प्यार)
लव (प्यार)
मुझे पता है कि अब तुम कभी वापस नहीं आओगी यार।
फिर भी ना जाने क्यों मैं कर रहा हूं तुम्हारा ये कैसा इंतज़ार।
मैंने अपनी जवानी के सब सुनहरे साल यूं ही दिए गुज़ार।
मगर मिल नहीं सका मुझे मेरी किस्मत का तुम्हारा वह प्यार।
एक एक दिन एक एक बरस बस ऐसे ही करके जाता रहा।
मैं सिर्फ़ तुम्हारे प्यार की ख़ातिर किसी का होने से कतराता रहा।
अपने सूनी तन्हाई के दर्द को बस झेलता रहा, मैं सहता रहा।
क्योंकि तुम्हारे वापस आने के वादे को ही सच मैं कहता रहा।
अब तो उम्र कट गई अकेले ही, फिर भी तुम से बात होती है मेरी।
अपना सूनापन भूल सा जाता हूं, वर्ना अब तो रातें हैं सूनी अंधेरी।
समझौता ज़िंदगी से अब तो कर लिया है मैंने अकेलेपन को अपनाकर।
कभी दिल रोता है तो डराता हूं तो कभी चुप करवा देता हूं समझाकर।