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Swapnil Choudhary

Abstract Tragedy Others

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Swapnil Choudhary

Abstract Tragedy Others

"लोग मेरे देश के"

"लोग मेरे देश के"

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ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे देश के।

अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे देश के।


कह रही है झोंपड़ी और' पूछते हैं खेत भी,

कब तलक लुटते रहेंगे लोग मेरे देश के।


बिन लड़े कुछ भी यहाँ मिलता नहीं ये जानकर,

अब लड़ाई लड़ रहे हैं लोग मेरे देश के।


कफ़न बाँधे हैं सिरों पर हाथ में तलवार है,

ढूँढने निकले हैं दुश्मन लोग मेरे देश के।


हर रुकावट चीख़ती है ठोकरों की मार से,

बेड़ियां खनका रहे हैं लोग मेरे देश के।


दे रहे हैं देख लो अब वो सदा-ए-इंकलाब,

हाथ में परचम लिए हैं लोग मेरे देश के।


एकता से बल मिला है झोंपड़ी की साँस को,

आँधियों से लड़ रहे हैं लोग मेरे देश के।


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