जब आगे बढ़ने की कोई, राह नज़र नहीं आती है जब आगे बढ़ने की कोई, राह नज़र नहीं आती है
मुझसे नराजगी रहती ज़रा-सी बात पर बदल गए इसको लब से लगाते-लगाते मुझसे नराजगी रहती ज़रा-सी बात पर बदल गए इसको लब से लगाते-लगाते
हर रुकावट चीख़ती है ठोकरों की मार से, बेड़ियां खनका रहे हैं लोग मेरे देश के। हर रुकावट चीख़ती है ठोकरों की मार से, बेड़ियां खनका रहे हैं लोग मेरे देश के।