लज्जा - एक आभूषण
लज्जा - एक आभूषण
औरतें? भला वो तन की बात करे?
औरतें? और तन की चाहत की बात करे?
औरतें? और तन की ज़रूरतों की बात करे?
छि: छि:...
तन की ज़रूरतों की बात करनेवाली
औरत कुलटा और पतिता हुयी न?
जिसने निर्लज्जता की आख़िरी हद भी पार कर ली है ...
घनघोर ताड़ना की अधिकारिणी...
मर्दों की पंचायत का फ़रमान है
औरतें आभूषण के ऊपर एक और आभूषण धारण करे.....
वही लज्जा नाम का आभूषण!!!
औरत सिर से पाँव तक लज्जा ही लज्जा धारण करे....
ताकि उसे ज़िंदगीभर अपने वजूद पर लज्जित रहना पड़े.....
फिर शर्मिंदगी की कालिख पोत कर अधीनता में वह जीना सीख ले....
लज्जा के आवरण में वह आँखें उठाने का दुस्साहस भी न करे ...
उसे आँख उठाकर असीम नभ को देखने का अधिकार जो नहीं है!
अधिकार!!!!
ऐसा न हो कि अधिकार की माँग कर वह ऊँची उड़ान की अभिलाषा करने का पाप करे !!
वह नीचे ही देखे......
नीचे देखते रहने से ग़ुलामी अपनेआप सीख ली जाती है.....
हाँ,तो सारांश है की औरत तन की बात न करे.......
हाँ, अपना तन बस सजा कर रखे ताकि जिस्म की नुमाइश होती रहे...
औरत......
औरत मन की बात भी न करे वर्ना उसके लिए मुँहफट,बेशर्म,अशिष्ट और ज़ुबान चलाने वाली विशेषण तो है ही......
वह वो वही बात करे जो मर्द जात चाहती हैं...
वह इंसान नहीं, वस्तु है, एक आइटम मात्र!!!
इसलिए की हर हाल में वह उपलब्ध रहे...
हाँ, यही उसका प्रारम्भ है और प्रारब्ध भी...
और इस बात से किसे क्या फर्क पड़ता है?
