क्यूँ लगता है तुम यहीं कहीं हो
क्यूँ लगता है तुम यहीं कहीं हो
नहीं पता यह सब क्या है ?
मोहब्बत है या सब तेरी माया !
तेरे होने का अहसास है
या केवल मेरा दीवानापन !
अभी भी क्यूँ लगता है मुझे ?
तुम यहीं कहीं हो !
मेरी यादों में तुम
हर धड़कन में तुम
साँसों में, इरादों में
तुम ही तुम हो !
ऐसा लगता है आज भी
तुम हर पल साथ हो...
सपनों में आकर तुम ही तो
कहती हो...मैं हूँ ना ?
अभी भी क्यूँ लगता है मुझे ?
तुम यहीं कहीं हो !
याद तो उसे किया जाता है
जिसे हम भूल चुके हैं...
तुम तो आती हो बन के
सुबह की पहली किरण !
तुम तो आती हो कभी
उदासी कि धूप बनकर...
कभी हँसी-खुशी बनकर
रिमझिम बरसता सावन !
अभी भी क्यूँ लगता है मुझे ?
तुम यहीं कहीं हो !
कभी-कभी लगता है...
मेरे साथ ही क्यूँ होता है ऐसा ?
क्यूँ याद आती हो तुम
याद सुबह शाम देर रात, सपनों में !
फिर सोचता हूँ...
तुने कब कहा मुझे
याद करो, भूल जाओ
तेरी आने की आहट
क्या यही मेरी चाहत है
या सिर्फ दीवानापन ?
अभी भी क्यूँ लगता है मुझे ?
तुम यहीं कहीं हो !