क्यों
क्यों
क्यों कर हम बेबस हो जातें हैं,
इन अख़बार में आई ख़बरों, से
हत्याओं का सिलसिला रुकता नहीं,
क्या इन मासूम और बेगुनाहों,
के ख़ून से रंगें हाथों वाले,
इन हत्यारों को ज़रा भी
नहीं अफ़सोस होता,
इन हत्यारों को
क्यों ले रहें हैं ये दरिंदे,
औरतों, बच्चों
की जान बेरहमी से,
आंतक का ख़ूनी खेल,
क्यों खेल रहे हैं ये हत्यारे,
क्यों हत्यारे बने जा रहें हैं ?
